इंसान की फितरत में है कहकर के मुकरना। नाराज़गी का इल्म भी उसको कराऊं क्यूं।। 😢👎💔
बेसाख्ता वो आए भी आकर चले गए। अब ऐसे दोस्त यार को दिल में बसाऊं क्यूं।। 😔😢🚫
तारीख़ की गिनती में हर इक हादसा यहां। मैं दर्द दास्तां को बारहा सुनाऊं क्यूं।। 📚💫🕰️
नफ़रत की ये चिंगारियां सबको जला रही। मैं मज़हबों के बीच में खाई बनाऊं क्यूं।। 🌎💖🕊️
आलोक रंजन त्रिपाठी 🌟👏💕
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