शब्दों का मायाजाल (आध्यात्मिक–सामाजिक कहानी)
✍️ लेखक: आलोक रंजन त्रिपाठी
ज्योतिष एवं वास्तु एक्सपर्ट • क्रिएटिव राइटर
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1. शब्द— जो बन जाएँ दवा भी और दर्द भी
कहते हैं—
“बाण से निकला तीर और मुँह से निकला शब्द, लौटकर कभी नहीं आते।”
लेकिन लोग यह नहीं समझते कि
शब्दों की चोट कई बार तीर से गहरी होती है।
एक ऐसी चोट, जो दिखाई नहीं देती, पर भीतर तक रिसती रहती है।
यही कहानी है अंशुमान की—
एक शांत, संवेदनशील और मेहनती लड़का,
जो एक छोटे से गाँव में रहता था।
उसका स्वभाव इतना सरल कि कोई बात दिल पर लेकर उसे दुख पहुँचा दे।
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2. एक वाक्य, जिसने जिंदगी बदल दी
एक दिन स्कूल में शिक्षक ने उसे डांटते हुए कहा—
“तुमसे कुछ नहीं होगा! तुम जीवनभर कमजोर ही रहोगे!”
बस यही एक वाक्य
अंशुमान के मन में तीर की तरह चुभ गया।
वह खाना कम खाने लगा,
दोस्तों से दूर रहने लगा,
दर्पण में अपना चेहरा भी देखने से कतराने लगा।
एक वाक्य ने उसका आत्मविश्वास चुरा लिया था।
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3. नदी किनारे बैठे एक संत का मिलना
एक शाम वह उदासी में नदी किनारे बैठा था।
उसी समय एक वृद्ध संत वहाँ आए।
उन्होंने पूछा—
“बेटा, क्या ढूँढ रहे हो?”
अंशुमान बोला—
“अपना अस्तित्व… जो किसी ने शब्दों से छीन लिया।”
संत मुस्कुराए।
उन्होंने मुट्ठी भर रेत उठाई और बोला—
“अगर मैं कहूँ कि यह रेत सोना है— क्या तुम मानोगे?”
अंशुमान ने सिर हिलाया—
“नहीं। क्योंकि यह रेत ही है।”
संत बोले—
“तो फिर किसी की जुबान अगर तुम्हें ‘कमजोर’ कहे,
तो तुम उसे क्यों मान लेते हो?”
अंशुमान स्तब्ध था।
संत ने आगे कहा—
“बेटा, शब्दों की ताकत यह नहीं कि वे सच हैं…
ताकत यह है कि तुम उन्हें कितना सच मान लेते हो।
गलत शब्द भी तब तक चोट करते हैं जब तक तुम उन्हें दिल में जगह देते हो।”
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4. शब्दों का मायाजाल— जिससे सब बंधे हैं
संत ने एक कुएँ की ओर इशारा किया—
“इस कुएँ में कोई पत्थर फेंके, तो लहर पैदा होगी।
शब्द भी ऐसे ही दिल में गिरते हैं।
कभी मीठे लगते हैं, कभी कड़वे।
फर्क सिर्फ यह है कि
पत्थर बाहर निकाल सकते हो,
पर शब्द दिल में जाकर घर बना लेते हैं।”
अंशुमान ने पूछा—
“तो फिर क्या किया जाए?”
संत बोले—
“कौन सा शब्द अंदर आने देना है,
और किसे बाहर ही छोड़ देना है—
यही समझदारी है। यही साधना है।”
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5. सकारात्मक शब्द— दिव्य ऊर्जा
संत ने कहा—
“बेटा, हर शब्द में एक कंपन होता है।
‘आशीर्वाद’ कहो तो हल्की, शीतल लहर दौड़ती है,
‘शाप’ कहो तो भारी अंधकार पैदा होता है।
इसीलिए प्रार्थना, मंत्र, गायत्री—
ये सब सिर्फ शब्द नहीं,
ऊर्जा के स्रोत हैं।”
अंशुमान धीरे-धीरे समझ रहा था।
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6. समाज में शब्दों का असर— एक आईना
संत ने समाज की ओर संकेत करते हुए कहा—
“हमारे गाँव-शहरों में कितने बच्चे हैं
जो माता-पिता के एक शब्द ‘नालायक’ से टूट जाते हैं।
कितनी महिलाएँ हैं
जो पति की एक कड़वी बात से जीवनभर दुख छुपाती रहती हैं।
कितने बुजुर्ग
सम्मान के दो मीठे शब्द के लिए तरस जाते हैं।”
वे चुप हो गए।
फिर बोले—
“शब्द इंसान को मार भी देते हैं और जिंदा भी कर देते हैं।”
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7. शक्ति का जागरण
अंशुमान ने पहली बार खुद को भीतर से मजबूत महसूस किया।
उसे लगा—
“मैं वही हूँ जो मैं खुद को मानता हूँ।”
न कि वह, जो कोई गुस्से में बोल दे।
उसने पढ़ाई में फिर से मन लगाया।
कमजोर विषयों पर मेहनत की।
और एक साल बाद उसकी पहचान पूरी स्कूल में बदल चुकी थी।
जब वही शिक्षक जिसने उसे डांटा था,
उसे पुरस्कार दे रहे थे,
अंशुमान ने सिर झुकाकर कहा—
“सर, आपके शब्दों ने मुझे दुखी किया,
पर एक संत के शब्दों ने मुझे जीना सिखाया।”
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8. कहानी का आध्यात्मिक निष्कर्ष
संत का अंतिम वाक्य यही था—
“शब्द ईश्वर का दिया हुआ सबसे शक्तिशाली अस्त्र हैं।
इनका उपयोग मरहम की तरह करो,
ज़हर की तरह नहीं।”
अंशुमान ने ज़िंदगी में यह मंत्र उतार लिया।
और आगे चलकर वह लोगों को यही सिखाने लगा—
कि शब्दों का मायाजाल तब तक खतरनाक है,
जब तक हम उसे समझ न लें।
समझने के बाद
शब्द हमारे सेवक बन जाते हैं,
हमारे मालिक नहीं।
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💡 सामाजिक संदेश
बच्चों को कड़वे शब्द नहीं, हौसला दो।
परिवार में संवाद मीठा रखो, जख्म नहीं।
किसी की आत्मा को शब्दों से मत तोड़ो—
टूटे हुए लोग समाज को कमजोर करते हैं।
किसी भी रिश्ते की नींव— मीठे और सच्चे शब्द हैं।
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