गीतिका श्रृषि श्रृंगारी पांडेय जी
************* एक गीत *************
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2122 2122 2122 212=26 गीतिका छंद
मुक्ति पथ की चाह हो तो संग मेरे आइए।
रूप यौवन के शहर में मत मुझे भरमाइए।।
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मैं उपासक और याचक हूँ भले श्रंगार का।
नेह भीगे लोचनों का सृजन के संसार का।।
सृष्टि के उद्गम चरण की व्यंजनायें साध कर,
जिन्दगी का गीत मधुरिम गा सको तो गाइए।।
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प्रेम का अनुवाद बोलो कौन है जो कर सका।
आत्मा के सूक्ष्म घट को कौन है जो भर सका।
क्या असम्भव और सम्भव का विवेचन ठीक है,
इस पहेली को अगर सुलझा सको सुलझाइए।।
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देह की मैली शिला पर वासना का बास है।
काम की सकरी गली में अनबुझी सी प्यास है।।
कुम्भ में उतरो कभी जो बुद्ध का दर्शन करो,
चुन समाधी की डगर आनन्द मठ पा जाइए।।
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घोर तम होने से पहले लौट अपने घर चलें।
दिव्यता का दीप सत की देहरी पर धर चलें।।
एक अनजानी गुफा के द्वार पर मिलना मुझे
मैं वहीं बैठा मिलूँगा मीत मत घबराइए।।
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( ऋषि श्रृंगारी )
टिप्पणियाँ
देह की मैली ******
श्रेष्ठ बन्द बन पड़ा है ।
बहुत बधाई भाई ।
@सुभाष राहत बरेलवी
@सुभाष राहत बरेलवी