ग़ज़ल मशहूर कवयित्री वंदना विनम्र जी

ग़ज़ल 

चीख कर ये दीवारें कहें, कान मुझसे हटा दीजिए।
हम कहां तक सुने चुगलियां, आप हमको बता दीजिए।।

कहते दीवारों के कान हैं,पर ये दीवारें बेजान हैं।
क्यों ये इल्जाम हम पर लगा,है गुजारिश हटा दीजिए।।

है शिकायत बहुत जिनसे भी,रूबरू होके कह न सके।
छोड़िए बैर और दुश्मनी,अपने है न सजा दीजिए।।

इस तरह मत करो जुल्म भी , आप करते रहो हम भरें।
थोड़ी इंसानियत सीखकर, आप खुद को जगा दीजिए।।

आप बंटवारे करते रहे, खीच आंगन में दीवार को।
क्या किया हमने बदनाम हम,इसका उत्तर ज़रा दीजिए।।

मैं हूं दीवार रक्षा करूं, घर किसी का भी फोड़ा नहीं।
मैं अगर हूं गुनहगार तो,आप मुझको गिरा दीजिए।।

जोड़कर हाथ कहती हूं मै, सबके घर में ही रहती हूं।
कुछ हमने सुना ही नहीं,आप सबको बता दीजिए।।

कान मुझमें अड़ाते रहें, और कीले गड़ाते रहें।
कान दीवारों के होते है,आज भ्रम ये मिटा दीजिए।।

सुन लो दीवारें हंसने लगीं,तंज इंसा पे कसने लगीं।
आपको भी तो सच है पता,अब न खुद को दगा दीजिए ।।


वंदना विनम्र जबलपुर म प्र

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