ग़ज़ल आलोक रंजन इन्दौरवी
कौन किसके दिल में ढल जाएगा तुमको क्या पता।
वक्त का पंछी निकल जायेगा तुमको क्या पता।।
मंजिलें हैं दूर आंखों में झलकती जा रही।
ये मुसाफिर दूर चल जायेगा तुमको क्या पता।।
उलझनों में देर तक उलझे रहे तो हो न हो।
उम्र का पहिया निकल जायेगा तुमको क्या पता।।
जिस जहां को खूबसूरत देखते हो आज तुम।
उसका नक्शा कल बदल जायेगा तुमको क्या पता।।
सब नशे में चल रहे हैं काफ़िले तो देखिए।
कौन जानें कब संभल जायेगा तुमको क्या पता।।
तुम मगरमच्छों को दाना डालकर खुश रहे ।
क्या पता तुमको निगल जायेगा तुमको क्या पता।।
मोम का दिल है मेरा पत्थर नहीं समझो इसे।
एक आंसू पर पिघल जायेगा तुमको क्या पता।।
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