ग़ज़ल मशहूर कवयित्री वंदना विनम्र जी
ग़ज़ल
दे दिया तुमने दग़ा तो अब सगा किसको कहे।
तू बसा रग- रग में मेरी बेवफ़ा किसको कहे।।
इश्क़ के हकदार वो ही जो तेरे अपने रहे।
मर गई संवेदनायें फिर जगा किसको कहे।।
ये तमाशा बन्द कर दे रहने दे तन्हा मुझें।
घाव तुमने दे दिए मरहम लगा किसको कहे।।
जिंदगी में दर्द थे तेरी मोहब्बत थी दवा।
उस दवा में भी मिलावट अब दवा किसको कहे।।
टूट जाये दिल अगर तो जोड़ पाता धन नहीं।
हानि रिश्तो से मिली है फलसफ़ा किसको कहे।।
टूटकर चाहा था उसको काँच से बिखरे है हम।
हो गए बर्वाद ऐसे क्या बचा किसको कहे।।
प्यार के पिंजरे से चाहत के परिंदे उड़ गए।
अश्क़ से तर आँखों का भी रतजगा किसको कहे।।
इश्क़ में मिलता दगा है था पता फिर भी किया।
ये ख़ता खुद ही हमारी तू बता किसको कहे।।
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