गीतिका श्रृषि श्रृंगारी पांडेय जी

************* एक गीत *************
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2122 2122 2122 212=26 गीतिका छंद 

मुक्ति  पथ  की चाह हो तो संग मेरे आइए। 
रूप यौवन के शहर में मत मुझे भरमाइए।।
मैं  उपासक और याचक हूँ भले श्रंगार का।
नेह  भीगे  लोचनों का सृजन के संसार का।।
सृष्टि के उद्गम चरण की व्यंजनायें साध कर,
जिन्दगी का गीत मधुरिम गा सको तो गाइए।।
प्रेम  का अनुवाद बोलो कौन है जो कर सका।
आत्मा के सूक्ष्म घट को कौन है जो भर सका।
क्या असम्भव और सम्भव का विवेचन ठीक है,
इस पहेली को अगर सुलझा सको सुलझाइए।।
देह  की  मैली  शिला  पर वासना का बास है।
काम की सकरी गली में अनबुझी सी प्यास है।।
कुम्भ  में उतरो कभी जो बुद्ध का दर्शन करो, 
चुन समाधी की डगर आनन्द मठ पा जाइए।।
घोर  तम होने से पहले लौट अपने घर चलें।
दिव्यता का दीप सत की देहरी पर धर चलें।।
एक अनजानी गुफा के द्वार पर मिलना मुझे 
मैं  वहीं  बैठा  मिलूँगा  मीत  मत  घबराइए।।
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                       ( ऋषि श्रृंगारी )
                   मोवा:7987562207

टिप्पणियाँ

बेनामी ने कहा…
आत्मीय आभार आलोक रंजन जी आपका।।
बेनामी ने कहा…
लाजवाब गीत ,
देह की मैली ******
श्रेष्ठ बन्द बन पड़ा है ।
बहुत बधाई भाई ।
बेनामी ने कहा…
वाह वाह अद्भुत गीत 👌👌👌
बेनामी ने कहा…
बहुत सुन्दर 👌
बहुत सुंदर प्रस्तुति आदरणीय 🌹🌹 जय श्री राधे कृष्ण 🙏
@सुभाष राहत बरेलवी
बहुत सुंदर प्रस्तुति आदरणीय !!जय श्री कृष्णा 🌹
@सुभाष राहत बरेलवी
बेनामी ने कहा…
बहुत-बहुत आभार आलोक जी आपका, गीत की गेयता के सापेक्ष से पुन: साक्षात्कार कराने के लिए। जीवन में जीया गया कल और आज दोनों के सत्य को उद्घाटित करने की सामर्थ्य केवल गीत में ही है। 🙏🙏

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