ग़ज़ल सुशील साहिल जी

तेरी  दोस्ती  के  फ़साने  बहुत  हैं
निगाहों के लेकिन निशाने बहुत हैं
تری  دوستی کے فسانے  بہت ہیں
 نگاہوں کے لیکن نشانے  بہت ہیں
नए मसअलों को न आवाज़ दीजे
उलझने की ख़ातिर पुराने बहुत हैं
نئے مسئلوں کو نہ اواز دیجئے 
الجھنے کی خاطر پرانے بہت ہیں

गुलिस्तां में शाख़ों की बस इक कमी है
मगर   उल्लुओं   के   घराने  बहुत   हैं
گلستاں میں شاخوں کی بس اک کمی ہے
 مگر اللوں  کے گھرانے بہت ہیں
उलटिये नहीं हांडी के सारे चावल
परखने को थोड़े ही दाने बहुत हैं
الٹے نہیں ہانڈی کے سارے چاول 
پرکھنے کو تھوڑے ہی دانے بہت ہیں
तेरे पास हैं मुजरिमों की क़तारें
मेरे पास भी क़ैद-ख़ाने बहुत हैं
ترے پاس ہیں مجرموں کی قطاریں
 مرے پاس بھی قید خانے بہت ہیں
सिन-ओ- साल मेरे ज़ियादा हों यारब
अभी क़र्ज़ मुझको चुकाने बहुत हैं
سِن و  سال  میرے  زیادہ  ہوں یا رب
 ابھی قرض مجھکو جھکانے بہت ہیں
वहीं विषधरों के ठिकाने हैं 'साहिल'
जहाँ गौहरों के ख़ज़ाने बहुत हैं
 وہیں وشدھروں  کے ٹھکانے ہیں ساحل
 جہاں  گوہروں  کے  خزانے  بہت  ہیں 
सिन-ओ-साल : आयु, उम्र, 
गौहर : कीमती पत्थर, मणि
-सुशील साहिल

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