दोस्ती के दायरे में नफ़रतों की बू न होये दुवा करना किसी की आंख में आंसू न हो
पेश है इक पुरानी ग़ज़ल
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दोस्ती के दायरे में नफ़रतों की बू न हो
ये दुवा करना किसी की आंख में आंसू न हो
ज़िंदगी के हर क़दम पर प्यार ही क़ायम रहे
इक मुहब्बत के सिवा बस कोई आरजू ना हो
आशिकी करने की ज़ुर्रत करना भी बेकार है
गर तुम्हारे दिल में कोई हुस्न की ख़ुशबू ना हो
कौन इज्ज़त दे सकेगा तुमको अपने दिल में अब
जब तुम्हारी सोच में उसकी ही आबरू ना हो
ज़िंदगी जब खिलखिला हट मुस्कुराहट छीन ले
और भी बढ़ जाता गम जब दोस्त का पहलू न हो
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