ग़ज़ल आलोक रंजन इन्दौरवी
बहुत बड़ा कहलानें से क्या होता है।
ख़ुद का खून जलानें से क्या होता है।।
अपना पंख जलाकर जो जिंदा भी हो ।
ऐसे भी परवानें से क्या होता है।।
मन का मैल नहीं धुल पाया है अब तक।
सौ सौ बार नहानें से क्या होता है।।
थर्म कर्म का मर्म अगर नहीं समझे।
मंदिर मस्जिद जानें से क्या होता है।।
मर्यादा सम्मान गुणों से मिलता है।
झूठा ओहदा पानें से क्या होता है।।
मेहनत से तो कोसों दूर रहे अब तक।
घर बैठे पछतानें से क्या होता है।।
व्रत पूजा से निर्मल मन तो हुआ नहीं।
कंद मूल फल खानें से क्या होता है।।
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