ग़ज़ल आलोक रंजन इन्दौरवी
वो मेरे प्यार के रंगों में अपना रंग मिलाता है
बड़ी संजीदगी से हाल ए दिल अपना बताता है
मुहब्बत की हर इक तकरीर लिखकर अपने हाथों से
मेरे दिल की दीवारों पर नया पहरा लगाता है
कभी तन्हाइयों का वास्ता देकर वो रोता है
कभी मुझको सुकूं दे कर वो हंसता मुस्कुराता है
मैं उसकी बज़्म का हिस्सा नहीं हूं फिर भी जाने क्यूं
वो अपने ख्वाब मेरे नाम से अक्सर सजाता है
उसे मंजूर है इस इश्क़ में हद से गुजरना भी
इसी एहसास से अपना कदम आगे बढ़ाता है
जुनून ए इश्क में दरियादिली ऐसी नहीं देखी
मुकद्दर का भरोसा छोड़कर रस्ता बनाता है
किसी सौगात से कम भी नहीं ऐसी मुहब्बत भी
जिसे मिल जाए वो इंसान गम को भूल जाता है
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