आंखों से कुछ अश्क़ निकलना बाक़ी है।
आंखों से कुछ अश्क़ निकलना बाक़ी है। जीवन की रफ़्तार बदलना बाक़ी है।। जो भी मुल्य चुकाया है तुमने अब तक। अंगारों पर फिर भी चलना बाक़ी है।। क्या पाया क्या खोया कुछ तो याद करो। स्मृतियों में जीना मरना बाक़ी है।। दौलत कौन तुम्हें मिल पाई है ऐसी। खाली हाथों को तो मलना बाक़ी है।। इच्छाओं की गठरी खुलती जायेगी। गिर गिर करके और फिसलना बाक़ी है।। बाजारों की भीड़ से जब भी निकलोगे। तनहाई में ज़िंदा रहना बाक़ी है।। मौक़े तो आये होंगे फिर आयेंगे। रंजन सच्ची राह पकड़ना बाक़ी है।। आलोक रंजन इन्दौरवी