अहंकार -दिखावे की ताकत

अहंकार: “दिखावे की ताकत”

लेखक: आलोक रंजन त्रिपाठी, ज्योतिष एवं वास्तु विशेषज्ञ

अजय गाँव के पास ही रहने वाला युवक था। वह हमेशा दूसरों की नजरों में बड़ा और खास दिखना चाहता था। हर काम में उसे अपनी श्रेष्ठता साबित करनी होती थी। यह अहंकार उसे इतना घेरे रहता कि वह अपने परिवार और मित्रों की सलाह तक सुनता नहीं था।

एक दिन गाँव में सामाजिक कार्य का आयोजन हुआ। सब लोग मिलकर गाँव की साफ-सफाई, वृक्षारोपण और छोटे-छोटे निर्माण कार्य कर रहे थे। अजय ने सोचा, “इस बार मैं सबसे अलग और सबसे बड़ा दिखूँगा।” उसने सबसे महंगे वस्त्र पहन लिए और सबसे ऊँची सीढ़ियों पर चढ़कर काम करना शुरू कर दिया। उसकी चाल और हाव-भाव केवल यह दिखा रहे थे कि वह बाकी सभी से श्रेष्ठ है।

गाँव वाले धीरे-धीरे हँसने लगे। बुजुर्गों ने कहा, “देखो, कितना अहंकारी बन बैठा है। खुद तो काम नहीं कर रहा, बस दिखावा कर रहा है।”

अजय को यह सुनकर क्रोध आया। उसने और भी जोर लगा दिया। लेकिन जैसे ही एक बड़ा ढांचा उसने खुद बनाने की कोशिश की, वह ढह गया और अजय बाल-बाल बचा। पूरा गाँव जोर-जोर से हँस पड़ा।

अजय सोचने लगा, “कम से कम अब सब मेरी ताकत और साहस की प्रशंसा करेंगे।” लेकिन बुजुर्ग ने गंभीरता से कहा, “बेटा, अहंकार इंसान को दिखावे में उलझा देता है। असली सम्मान और खुशी मेहनत और विनम्रता में है, न कि ऊँचाई और दिखावे में।”

अजय को पहली बार एहसास हुआ कि उसने कितनी बार अपने अहंकार के कारण मित्रों और परिवार को अनदेखा किया। उसे समझ में आया कि उसकी असली ताकत दिखावे में नहीं, बल्कि सहानुभूति, सहयोग और सरलता में है।

कुछ दिन बाद गाँव में नया स्कूल बनने जा रहा था। अजय ने तय किया कि इस बार वह केवल दिखावा नहीं करेगा, बल्कि असली काम करेगा। उसने बच्चों की मदद की, निर्माण में हाथ बँटाया और गाँव वालों के सुझाव ध्यान से सुने।

उसने देखा कि उसके बदलाव से लोग खुश हो रहे हैं। रामफल दादा ने मुस्कुराते हुए कहा, “देखा बेटा, अहंकार छोड़कर जब तुम सच्चाई और सहयोग से काम करते हो, तो लोग तुम्हें वास्तव में सम्मान देते हैं। दिखावा और अहंकार केवल झूठा सम्मान दिलाते हैं।”

अजय ने महसूस किया कि आज के समय में भी अहंकार वही प्रभाव डालता है – व्यक्ति केवल खुद को बड़ा दिखाना चाहता है, लेकिन वास्तविक सफलता और संतोष सादगी, सहयोग और विनम्रता में ही मिलता है।

अब अजय सुबह उठता, बच्चों के साथ खेलता, बुजुर्गों की मदद करता और गाँव के कामों में तन-मन से जुटता। वह अपने अहंकार को पीछे छोड़कर जीवन में सच्चा सम्मान और सुख पाने लगा।

एक दिन रामफल दादा ने हँसते हुए कहा, “बेटा, अब तो तुम हमारे गाँव के सबसे बड़े सहयोगी बन गए हो। लेकिन याद रखना, अहंकार फिर कभी रास्ता न पाए।”

अजय मुस्कराया और कहा, “दादा, अब मैं केवल अपने कर्म और सरलता से अपना स्थान बनाऊँगा, दिखावे से नहीं।”

और इस तरह, गाँव के लोग न केवल अजय के बदलाव से खुश हुए, बल्कि उन्होंने यह सिखा कि अहंकार चाहे आधुनिक समय में सोशल दुनिया में छुपा हो, असली सम्मान और सुख केवल विनम्रता और सहयोग से ही मिलता है।

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