शादी में बिलंब ज्योतिष की दृष्टि में
सादी में देर या रुकावट — ज्योतिषीय दृष्टिकोण
मानव जीवन में विवाह केवल सामाजिक नहीं, बल्कि ग्रहों के समन्वय से जुड़ा एक संस्कार है। जब किसी जातक की शादी बार-बार टलती है, रिश्ते टूटते हैं, या समय बीतने पर भी विवाह का योग नहीं बनता — तो इसका संकेत जन्मकुंडली में स्पष्ट दिखाई देता है।
मुख्य कारण (ज्योतिषीय दृष्टि से):
सप्तम भाव की स्थिति: विवाह का मुख्य भाव सप्तम भाव होता है। यदि इस भाव पर शनि, राहु या केतु का प्रभाव हो, तो विवाह में देरी या अड़चन आती है।
शुक्र और गुरु की स्थिति: पुरुष जातक के लिए शुक्र, स्त्री जातक के लिए गुरु विवाह का कारक ग्रह हैं। यदि ये ग्रह पाप ग्रहों से पीड़ित हों, तो रिश्ते बनते-बनते टूट जाते हैं।
शनि की दृष्टि: शनि ग्रह विलंब का प्रतीक है। यदि यह सप्तम भाव में हो या उस पर दृष्टि डाले, तो विवाह में स्वाभाविक रूप से देर होती है।
राहु–केतु का प्रभाव: राहु या केतु के प्रभाव से विवाह में असमंजस या सामाजिक रुकावटें आ सकती हैं।
उपाय:
शुक्रवार का व्रत या गौरी-शंकर पूजा करें।
“ॐ शं शनैश्चराय नमः” मंत्र 108 बार जपें।
सोमवार को शिवलिंग पर जलाभिषेक करें।
योग्य गुरु से मंगल दोष या शनि शांति पूजा कराएं।
निष्कर्ष:
विवाह में देरी हमेशा दुर्भाग्य नहीं होती। कभी-कभी ग्रह यह सुनिश्चित करते हैं कि व्यक्ति को सही जीवनसाथी सही समय पर मिले। प्रतीक्षा भी एक दिव्य योजना का हिस्सा होती है।
— आलोक रंजन त्रिपाठी, ज्योतिष एवं वास्तु विशेषज्ञ
इन्दौर 8319482309
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