ख्वाबों के मौसम भी कितनें होते हैं। खुशियों के आलम भी कितनें होते हैं।।
ख़्वाबों के मौसम भी कितने होते हैं ख़ुशियों के आलम भी कितने होते हैं उसके जैसा कोई और कहां होगा वैसे तो हमदम भी कितने होते हैं दिल के तारों में झंकार हुई जबसे दिल समझा सरगम भी कितने होते हैं जिनको दिल कह करके आहें भरता है ऐसे दर्द ए ग़म भी कितने होते हैं छूकर कभी बुलंदी को जानोगे तुम इज्ज़त के परचम भी कितने होते हैं आलोक रंजन इंदौरवी