मां की ममता
मां की ममता 🌸
गांव के सिरे पर, अमलतास के पेड़ों के नीचे एक झोपड़ी थी — वहीं रहती थी राधा, अपने पाँच साल के बेटे चिराग के साथ।
राधा के जीवन में न सुख था, न सहारा; लेकिन उसके आंचल में ममता की ऐसी गहराई थी कि खुद दुख भी वहां आकर पिघल जाता था।
दिनभर खेतों में मेहनत करने के बाद जब वह शाम को लौटती, तो थकान जैसे हवा में घुल जाती — बस चिराग की हंसी सुनते ही।
“आ गया मेरा सूरज?” — वह मुस्कुराती, और बेटा उसकी गोद में समा जाता।
एक दिन राधा को तेज बुखार चढ़ गया। देह तप रही थी, आंखें बंद थीं।
चिराग ने अपनी नन्हीं हथेलियों से पानी लाकर मां के माथे पर पट्टी रखी।
उसकी आंखों में मासूम चिंता थी —
“मां, तू जल्दी ठीक हो जा... मैं भगवान से कह दूंगा।”
राधा की आंखों से आंसू बह निकले —
“मेरे लाल, तेरे प्यार से ही तो मैं सांस लेती हूं…”
सुबह की किरणें झोपड़ी में उतरीं तो राधा ने देखा — चिराग उसके पास ही सोया है, थकान से चेहरा धूल में सना हुआ, पर मुस्कान वैसी ही उजली।
राधा ने उसके सिर पर हाथ फेरा और मन ही मन कहा —
“हे ईश्वर, मेरी हर सांस मेरे बेटे की खुशी में बस जाए।”
उस छोटे से घर में धन नहीं था, पर ममता की समृद्धि थी।
वो झोपड़ी नहीं, मां के प्रेम का मंदिर थी —
जहां एक आंचल में दुनिया की सारी गर्माहट समाई थी।
आलोक रंजन त्रिपाठी
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