मां की रोटी में सपनें
📖 माँ की रोटी में सपने
— आलोक रंजन त्रिपाठी
ज्योतिष एवं वास्तु विशेषज्ञ, इन्दौर
राधा की जिंदगी सुबह की पहली किरण के साथ नहीं, बल्कि रात के अँधेरे में ही शुरू हो जाती थी। पाँच साल की बेटी गुड़िया अभी गहरी नींद में होती, और राधा चुपचाप उसके माथे को चूमकर घरों में काम करने निकल जाती। पति का साया एक हादसे में बहुत पहले ही छिन चुका था। अब राधा के लिए ज़िंदगी का मतलब था अपनी बेटी को गरीबी और बेबसी के इस दलदल से बाहर निकालना।
राधा होटल में रोटियाँ बेलती थी। आटे में वह सिर्फ नमक नहीं डालती थी, बल्कि अपनी उम्मीदें भी मिला देती थी। हर रोटी उसके अरमानों का चक्र होती – "एक दिन गुड़िया पढ़कर अफसर बनेगी", "एक दिन उसे कोई कमी नहीं झेलनी पड़ेगी", "एक दिन वो भी अपने सपनों की रोटी सेंक सकेगी…".
गुड़िया मासूम थी। वह रोज शाम को माँ के आने का इंतज़ार करती। जैसे ही राधा अंदर कदम रखती, गुड़िया दौड़कर उसके गले लग जाती।
"माँ, तू रोज इतना थक क्यों जाती है?"
राधा थकी आँखों से भी हँसने की कोशिश करती, "मैं थकती नहीं बेटी… तेरे सपने लेकर आती हूँ।"
दिन बीतते गए। गुड़िया ने स्कूल जाना शुरू किया। लेकिन एक दिन स्कूल में जब टीचर ने बच्चों से पूछा –
“तुम्हारे पापा क्या करते हैं?”
कई बच्चे बोले – “मेरे पापा इंजीनियर हैं,” “मेरे पापा बैंक में हैं,” “मेरे पापा डॉक्टर हैं।”
फिर टीचर ने पूछा – “और तुम्हारी मम्मी?”
“मेरी मम्मी टीचर,” “मेरी मम्मी ऑफिस में…” सबने गर्व से कहा।
गुड़िया चुप रही।
घर वापस आई तो बोली –
“माँ… तू क्या करती है? होटल में रोटी बेलना कोई काम है? सबकी मम्मियाँ बड़ी-बड़ी नौकरियों में हैं।”
राधा के दिल में तीर जैसा चुभा, पर चेहरे पर मुस्कान रखते हुए बोली –
“हाँ बेटी, मैं रोटियाँ बेलती हूँ… लेकिन हर रोटी में तेरे भविष्य को सेंकती हूँ। एक दिन यही रोटियाँ तेरे सपनों को जीने का स्वाद देंगी।”
बच्ची छोटी थी, भावनाएँ इतनी बड़ी नहीं समझ पाई। मगर उस रात पहली बार उसने माँ के सूखे पैरों पर हाथ फेरा और पूछा –
“माँ, ये दरारें क्यों हैं?”
राधा ने अपना दर्द छुपाते हुए कहा –
“ये तेरे रास्ते बनाने की ईंटें हैं, बेटी।”
समय बिता… गुड़िया बड़ी हो रही थी। अब उसे एहसास होने लगा कि माँ सिर्फ थकती नहीं, बल्कि टूटती भी है – मगर कभी गिरती नहीं। वह पढ़ाई में तेज़ थी। माँ हर बार कहती –
“बेटी, मैं रोटी बेलती हूँ ताकि तू कल क़लम थाम सके।”
गुड़िया ने ठान लिया – वह माँ की मेहनत को व्यर्थ नहीं जाने देगी।
कुछ साल बाद गुड़िया ने पढ़ाई पूरी की, प्रतियोगी परीक्षा दी, और एक सम्मानजनक सरकारी पद पर चयनित हो गई। जिस दिन चयन सूची आई, माँ होटल में रोटियाँ बेल रही थी। गुड़िया दौड़ती हुई गई और माँ की आटे से भरी हथेलियों को पकड़कर बोली –
“माँ, अब तू रोटियाँ नहीं बेलेगी… तेरी रोटी में जो सपने थे, आज सच हो गए।”
राधा की आँखों में आँसू थे, लेकिन इन आँसुओं में हार नहीं, जीत थी। उसने बेटी को सीने से लगाया और बोली –
“मैं नहीं चाहती थी कि तुझे मेरी थकान मिले, मैं चाहती थी कि तुझे मेरे सपने मिलें।”
कुछ दिनों बाद सरकारी समारोह में गुड़िया को सम्मानित किया जाना था। मंच पर पहुँचकर उसने माइक थामा और कहा –
“आज मैं यहाँ अपनी मेहनत से नहीं… बल्कि एक ऐसी औरत की रोटियों से पहुँची हूँ, जिसने हर रोटी में नमक नहीं, सपने गूँथे थे। मेरी माँ रोटियाँ नहीं बेलती थी… वह भविष्य गढ़ती थी।”
समस्त हॉल तालियों से गूंज उठा। गुड़िया ने माँ को मंच पर बुलाया। सफेद साड़ी में आटे के दाग अभी भी कहीं न कहीं उसके हाथों की लकीरों में छिपे थे। मगर उस दिन वही दाग सम्मान के पदक बन गए।
भीड़ में एक बच्चा अपनी माँ से पूछ रहा था –
“माँ, ये कौन हैं?”
उसकी माँ बोली –
“ये वही हैं, जिनके संघर्ष ने एक बेटी को ऊँचाई तक पहुँचाया।”
राधा की आँखों में गर्व था, और दिल में सुकून। वापस जाते समय गुड़िया ने कहा –
“माँ… आज तेरी रोटी में नमक नहीं… मिठास भी महसूस हुई।”
राधा हँसते हुए बोली –
“बेटी, मैंने तेरे लिए कभी नमक नहीं डाला… हमेशा सपने डाले थे।”
उस रोज के बाद से गुड़िया जब भी रोटी खाती, उसे सिर्फ स्वाद नहीं आता… उसमें माँ का त्याग, संघर्ष और अनंत सपने नज़र आते…
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🌾 संदेश:
माँ की रोटी कभी सिर्फ भोजन नहीं होती… वह सपनों, उम्मीदों और त्याग का वह स्वाद होती है जिसे समय भी फीका नहीं कर सकता।
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— आलोक रंजन त्रिपाठी
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