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भूत और भ्रम लघुकथा आलोक रंजन

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भूत और भ्रम  ----------------- लघुकथा    अँधेरी रात और पुरानी हवेली – ये दो चीज़ें थीं जो गाँव के हर व्यक्ति के मन में एक अनजाना डर पैदा करती थीं। इस गाँव का नाम था रामपुर, और पुरानी हवेली गाँव के एक छोर पर बरगद के विशाल पेड़ के नीचे खड़ी थी। कहा जाता था कि हवेली में एक ज़माने में ज़मींदार का परिवार रहता था, जिसने किसी के साथ बहुत बुरा किया था, और मरने के बाद उनकी आत्मा वहीं भटकती है। गाँव के बच्चे रात होने से पहले ही अपने घरों में दुबक जाते थे। उनकी दादी-नानियाँ उन्हें हवेली के भूतों की कहानियाँ सुनाकर डराती थीं। एक कहानी तो ख़ासकर बहुत प्रसिद्ध थी – हवेली के अंदर एक तहख़ाना है, जिसमें ज़मींदार का ख़ज़ाना छुपा है, लेकिन उस ख़ज़ाने की रखवाली ज़मींदार की भूतनी पत्नी करती है। जो भी रात में उस तरफ़ जाता, उसे अजीब-सी आवाज़ें और परछाइयाँ दिखाई देती थीं। उसी गाँव में एक युवक था, जिसका नाम था विजय। विजय बाक़ी सब से अलग था। वह पढ़ा-लिखा और तर्कवादी था। उसे भूतों की कहानियों पर ज़रा भी यक़ीन नहीं था। वह हमेशा गाँव वालों को समझाता कि यह सब मन का वहम है, लेकिन कोई उसकी बात नहीं सुनत...

नरेंद्र मोदी कर्मठ कार्यकर्ता से प्रधानमंत्री तक

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नरेंद्र मोदी   एक विचारक कर्मठ कार्यकर्ता से प्रधानमंत्री तक   लेखक: आलोक रंजन त्रिपाठी   ज्योतिष एवं वास्तु विशेषज्ञ नरेंद्र मोदी आज के भारत के उन नेताओं में से एक हैं, जिन्होंने अपने विचारों, कर्मठता और दूरदर्शिता से न केवल भारत, बल्कि पूरी दुनिया में अपने देश की पहचान को ऊँचाई तक पहुँचाया है। उनके नेतृत्व में भारत ने विकास, आत्मनिर्भरता और वैश्विक स्तर पर सम्मान के नए मानदंड स्थापित किए हैं। मोदी जी का व्यक्तित्व कई दृष्टियों से प्रेरक है। वे केवल एक राजनेता नहीं, बल्कि एक विचारक, आध्यात्मिक व्यक्ति और कर्मठ कार्यकर्ता भी हैं। उनके जीवन की कहानी यह सिखाती है कि कठिन परिस्थितियों में भी आत्मविश्वास और दृढ़ निश्चय से कोई भी व्यक्ति असंभव को संभव बना सकता है। उनकी सोच, नीतियाँ और जनता के प्रति उनकी प्रतिबद्धता ने उन्हें एक सशक्त और प्रभावशाली प्रधानमंत्री के रूप में स्थापित किया। यह अध्याय उनके व्यक्तित्व, दृष्टि और विचारधारा का परिचय देता है।  मोदी केवल एक कार्यकर्ता और नेता नहीं हैं, बल्कि एक गहरे विचारक भी हैं। उनके विचार और दृष्टिकोण आधुनिकता और पर...

कुंडली में धन योग

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आलोक रंजन त्रिपाठी ज्योतिष एवं वास्तु एक्सपर्ट  जन्म कुंडली में धन योग ऐसे शुभ संयोग होते हैं जो व्यक्ति को आर्थिक रूप से समृद्ध और सफल बनाते हैं। जब धन भाव (दूसरा भाव), लाभ भाव (ग्यारहवाँ भाव) या अर्थ त्रिकोण (दूसरा, पाँचवाँ और नौवाँ भाव) के स्वामी आपस में शुभ संबंध बनाते हैं, तो धन योग का निर्माण होता है। यदि गुरु , शुक्र या बुध इन भावों में स्थित हों या इनसे दृष्टि संबंध रखें, तो व्यक्ति को स्थायी और बढ़ता हुआ धन प्राप्त होता है। लग्नेश और धनेश के बीच योग बनना भी अत्यंत शुभ माना जाता है। इसके अलावा, जब लाभेश (ग्यारहवें भाव का स्वामी) केंद्र या त्रिकोण में हो, तो व्यक्ति को व्यापार, नौकरी या निवेश से अच्छा लाभ मिलता है। धन योग केवल पैसा देने वाला नहीं होता, बल्कि यह व्यक्ति को समझदारी से धन उपयोग करने की बुद्धि भी देता है। अगर इन योगों पर शनि , राहु या केतु का अशुभ प्रभाव न हो, तो व्यक्ति समाज में आर्थिक रूप से सम्मानित स्थान प्राप्त करता है। इसलिए कहा गया है—“कर्म और ग्रह दोनों जब साथ दें, तब ही भाग्य चमकता है।” धन योग व्यक्ति की मेहनत और ग्रहों की कृप...

, आंखों का स्वप्न प्रेरक कहानी

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छोटे से कस्बे में रहने वाले रामलाल और उनकी पत्नी सावित्री के जीवन का एक ही सपना था—उनका बेटा आदित्य बड़ा होकर कुछ ऐसा करे जिससे उनका सिर गर्व से ऊँचा हो जाए। रामलाल एक छोटे दर्जी थे, जो दिन-रात सिलाई मशीन पर झुके रहते, और सावित्री घर-घर जाकर लोगों के कपड़े धोतीं ताकि घर चल सके। गरीबी के बावजूद दोनों ने कभी शिकायत नहीं की, क्योंकि उनके दिल में एक उम्मीद जलती रहती थी—“हमारा बेटा पढ़-लिखकर हमारी तकदीर बदलेगा।” आदित्य बचपन से ही तेज था। स्कूल में उसके अंक हमेशा अच्छे आते थे। वह कहता, “पिताजी, मैं इंजीनियर बनकर आपके लिए बड़ा घर बनवाऊँगा।” रामलाल मुस्कुराते हुए कहते, “बेटा, तू बस मेहनत कर, बाकी हम पर छोड़ दे।” लेकिन उस मेहनत का बोझ असल में माता-पिता के कंधों पर था। जब दसवीं के बाद कॉलेज में दाखिले की बारी आई, तो फीस सुनकर रामलाल के चेहरे का रंग उड़ गया। फिर भी उन्होंने कहा, “पैसे की चिंता मत कर, बेटा।” उस रात वे घर से चुपचाप बाहर निकले और अपनी पुरानी सिलाई मशीन गिरवी रख दी। सावित्री ने अपने कानों के झुमके उतारकर पैसे जोड़ दिए। अगले दिन जब आदित्य ने प्रवेश पत्र हाथ में लिया, उसकी आँखों मे...

आपका जन्म और उद्देश्य ज्योतिष की दृष्टि में

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Alok ranjan आपका जन्म उद्देश्य – कुंडली से जानें आलोक रंजन त्रिपाठी, ज्योतिष एवं वास्तु विशेषज्ञ के अनुसार, हमारे जन्म का उद्देश्य हमारे लग्नेश (लग्न का स्वामी) और वह किस भाव में स्थित है, से तय होता है। 1. लग्नेश धर्म भाव (9वाँ भाव) में: जीवन का उद्देश्य धर्म, सेवा और समाज कल्याण। अपने कर्मों से लोगों के जीवन में सुधार लाना। नैतिकता और सिद्धांत के आधार पर आगे बढ़ना। 2. लग्नेश अर्थ भाव (2वाँ भाव) में: जन्म का उद्देश्य धन और संपत्ति अर्जित करना। आर्थिक सुरक्षा और भौतिक समृद्धि की ओर अधिक आकर्षण। जीवन में वित्तीय स्थिरता और संसाधनों की वृद्धि पर ध्यान। 3. लग्नेश मोक्ष भाव (12वाँ भाव) में: जन्म का उद्देश्य स्वतंत्रता, आत्मज्ञान और आंतरिक विकास। ज्यादा लगाव और बंधन न रखना। आत्मनिर्भर रहकर अपने लक्ष्य को प्राप्त करना। जन्म कुंडली का यह विश्लेषण हमें जीवन का वास्तविक उद्देश्य समझने में मदद करता है। जब हम अपने जन्म उद्देश्य के अनुसार कदम उठाते हैं, तो जीवन में संतोष, सफलता और स्थायी खुशी मिलती है। आलोक रंजन त्रिपाठी ज्योतिष एवं वास्तु विशेषज्ञ  इन्दौर  मोबाइल 8319482309

शादी में बिलंब ज्योतिष की दृष्टि में

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सादी में देर या रुकावट — ज्योतिषीय दृष्टिकोण मानव जीवन में विवाह केवल सामाजिक नहीं, बल्कि ग्रहों के समन्वय से जुड़ा एक संस्कार है। जब किसी जातक की शादी बार-बार टलती है, रिश्ते टूटते हैं, या समय बीतने पर भी विवाह का योग नहीं बनता — तो इसका संकेत जन्मकुंडली में स्पष्ट दिखाई देता है। मुख्य कारण (ज्योतिषीय दृष्टि से): सप्तम भाव की स्थिति: विवाह का मुख्य भाव सप्तम भाव होता है। यदि इस भाव पर शनि, राहु या केतु का प्रभाव हो, तो विवाह में देरी या अड़चन आती है। शुक्र और गुरु की स्थिति: पुरुष जातक के लिए शुक्र, स्त्री जातक के लिए गुरु विवाह का कारक ग्रह हैं। यदि ये ग्रह पाप ग्रहों से पीड़ित हों, तो रिश्ते बनते-बनते टूट जाते हैं। शनि की दृष्टि: शनि ग्रह विलंब का प्रतीक है। यदि यह सप्तम भाव में हो या उस पर दृष्टि डाले, तो विवाह में स्वाभाविक रूप से देर होती है। राहु–केतु का प्रभाव: राहु या केतु के प्रभाव से विवाह में असमंजस या सामाजिक रुकावटें आ सकती हैं। उपाय: शुक्रवार का व्रत या गौरी-शंकर पूजा करें। “ॐ शं शनैश्चराय नमः” मंत्र 108 बार जपें। सोमवार को शिवलिंग पर जलाभिषेक करें। योग्य गुर...

मां की ममता

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मां की ममता 🌸 गांव के सिरे पर, अमलतास के पेड़ों के नीचे एक झोपड़ी थी — वहीं रहती थी राधा, अपने पाँच साल के बेटे चिराग के साथ। राधा के जीवन में न सुख था, न सहारा; लेकिन उसके आंचल में ममता की ऐसी गहराई थी कि खुद दुख भी वहां आकर पिघल जाता था। दिनभर खेतों में मेहनत करने के बाद जब वह शाम को लौटती, तो थकान जैसे हवा में घुल जाती — बस चिराग की हंसी सुनते ही। “आ गया मेरा सूरज?” — वह मुस्कुराती, और बेटा उसकी गोद में समा जाता। एक दिन राधा को तेज बुखार चढ़ गया। देह तप रही थी, आंखें बंद थीं। चिराग ने अपनी नन्हीं हथेलियों से पानी लाकर मां के माथे पर पट्टी रखी। उसकी आंखों में मासूम चिंता थी — “मां, तू जल्दी ठीक हो जा... मैं भगवान से कह दूंगा।” राधा की आंखों से आंसू बह निकले — “मेरे लाल, तेरे प्यार से ही तो मैं सांस लेती हूं…” सुबह की किरणें झोपड़ी में उतरीं तो राधा ने देखा — चिराग उसके पास ही सोया है, थकान से चेहरा धूल में सना हुआ, पर मुस्कान वैसी ही उजली। राधा ने उसके सिर पर हाथ फेरा और मन ही मन कहा — “हे ईश्वर, मेरी हर सांस मेरे बेटे की खुशी में बस जाए।” उस छोटे से घर में धन नहीं था, प...