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ख्वाबों के मौसम भी कितनें होते हैं। खुशियों के आलम भी कितनें होते हैं।।

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ख़्वाबों के मौसम भी कितने होते हैं ख़ुशियों के आलम भी कितने होते हैं  उसके जैसा कोई और कहां होगा वैसे तो हमदम भी कितने होते हैं  दिल के तारों में झंकार हुई जबसे दिल समझा सरगम भी कितने होते हैं  जिनको दिल कह करके आहें भरता है  ऐसे दर्द ए ग़म  भी कितने होते हैं छूकर कभी बुलंदी को जानोगे तुम इज्ज़त के परचम भी कितने होते हैं आलोक रंजन इंदौरवी

कैसे हुआ पांडवों का जन्म आइए जानते हैं।

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कैसे हुआ पांडवों का जन्म -------------------------------- पांचो पांडवो का जन्म भी बिना पिता के वीर्य के हुआ था। एक बार राजा पाण्डु अपनी दोनों पत्नियों – कुन्ती तथा माद्री – के साथ आखेट के लिये वन में गये। वहाँ उन्हें एक मृग का मैथुनरत जोड़ा दृष्टिगत हुआ। पाण्डु ने तत्काल अपने बाण से उस मृग को घायल कर दिया। मरते हुये मृग ने पाण्डु को शाप दिया, “राजन!  तुम्हारे समान क्रूर पुरुष इस संसार में कोई भी नहीं होगा। तूने मुझे मैथुन के समय बाण मारा है अतः जब कभी भी तू मैथुनरत होगा तेरी मृत्यु हो जायेगी।” इस शाप से पाण्डु अत्यन्त दुःखी हुये और अपनी रानियों से बोले, “हे देवियों! अब मैं अपनी समस्त वासनाओं का त्याग कर के इस वन में ही रहूँगा तुम लोग हस्तिनापुर लौट जाओ़” उनके वचनों को सुन कर दोनों रानियों ने दुःखी होकर कहा, “नाथ! हम आपके बिना एक क्षण भी जीवित नहीं रह सकतीं।  आप हमें भी वन में अपने साथ रखने की कृपा कीजिये।” पाण्डु ने उनके अनुरोध को स्वीकार कर के उन्हें वन में अपने साथ रहने की अनुमति दे दी। इसी दौरान राजा पाण्डु ने अमावस्या के दिन ऋषि-मुनियों को ब्रह्मा जी के दर्शनों के लिये जात...

दोस्ती के दायरे में नफ़रतों की बू न होये दुवा करना किसी की आंख में आंसू न हो

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पेश है इक पुरानी ग़ज़ल ,,,,,, दोस्ती  के  दायरे में   नफ़रतों  की  बू  न  हो ये दुवा करना किसी की आंख में आंसू न हो ज़िंदगी के हर क़दम पर प्यार ही क़ायम रहे इक मुहब्बत के सिवा बस कोई आरजू ना हो आशिकी करने की ज़ुर्रत करना भी बेकार है गर तुम्हारे दिल  में कोई हुस्न की ख़ुशबू ना हो कौन इज्ज़त दे सकेगा तुमको अपने दिल में अब जब तुम्हारी सोच में उसकी ही आबरू ना हो ज़िंदगी जब खिलखिला हट मुस्कुराहट छीन ले और भी बढ़ जाता गम जब दोस्त का पहलू न हो आलोक रंजन इंदौरवी

आंखों से कुछ अश्क़ निकालना बाक़ी है।

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आंखों से कुछ अश्क़ निकलना बाक़ी है। जीवन  की  रफ़्तार  बदलना  बाक़ी है।। जो भी मुल्य चुकाया है तुमने अब तक। अंगारों  पर  फिर  भी  चलना बाक़ी है।। क्या पाया क्या खोया कुछ तो याद करो। स्मृतियों   में   जीना   मरना   बाक़ी है।। दौलत  कौन  तुम्हें  मिल  पाई  है ऐसी। खाली   हाथों   को   तो  मलना बाक़ी है।। इच्छाओं   की   गठरी   खुलती जायेगी। गिर  गिर करके और फिसलना बाक़ी है।। बाजारों  की  भीड़  से  जब  भी निकलोगे। तनहाई    में    ज़िंदा  रहना  बाक़ी है।। मौक़े  तो   आये   होंगे   फिर आयेंगे। रंजन  सच्ची   राह  पकड़ना  बाक़ी है।। आलोक रंजन इन्दौरवी

किसी मुकाम पर चलकर चलो पुकार करें

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किसी मकाम पे चलकर चलो पुकार करें बड़ा रंगीन है मौसम तो इसमें प्यार करें नज़र लगे न कोई रंग भरे मौसम को इसी ख़ुशी में मुहब्बत का इंतजार करें अगर ख़ता है मुहब्बत तो बता दें सबको यहां के लोग ख़ता ऐसी बार बार करें जुल्म सहकर जो मुहब्बत को बचा पाये हैं उन्हीं का जिक्र यहां हम भी एक बार करें कभी तो हम भी पहुंच जायेंगे मंजिल अपनी करो न देर चलो रास्ते तो पार करें आलोक रंजन इंदौरवी

ग़ज़ल आलोक रंजन इन्दौरवी

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बहुत बड़ा कहलानें से क्या होता है। ख़ुद का खून जलानें से क्या होता है।। अपना पंख जलाकर जो जिंदा भी हो । ऐसे भी परवानें से क्या होता है।। मन का मैल नहीं धुल पाया है अब तक। सौ सौ बार नहानें से क्या होता है।। थर्म कर्म का मर्म अगर नहीं समझे। मंदिर मस्जिद जानें से क्या होता है।। मर्यादा सम्मान गुणों से मिलता है। झूठा ओहदा पानें से क्या होता है।। मेहनत से तो कोसों दूर रहे अब तक। घर बैठे पछतानें से क्या होता है।। व्रत पूजा से निर्मल मन तो हुआ नहीं। कंद मूल फल खानें से क्या होता है।। आलोक रंजन इन्दौरवी

ग़ज़ल आलोक रंजन इन्दौरवी

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कौन किसके दिल में ढल जाएगा तुमको क्या पता।  वक्त का पंछी निकल जायेगा तुमको क्या पता।। मंजिलें हैं दूर आंखों में झलकती जा रही। ये मुसाफिर दूर चल जायेगा तुमको क्या पता।। उलझनों में देर तक उलझे रहे तो हो न हो। उम्र का पहिया निकल जायेगा तुमको क्या पता।। जिस जहां को खूबसूरत देखते हो आज तुम। उसका नक्शा कल बदल जायेगा तुमको क्या पता।। सब नशे में चल रहे हैं काफ़िले तो देखिए। कौन जानें कब संभल जायेगा तुमको क्या पता।। तुम मगरमच्छों को दाना डालकर खुश रहे । क्या पता तुमको निगल जायेगा तुमको क्या पता।। मोम का दिल है मेरा पत्थर नहीं समझो इसे। एक आंसू पर पिघल जायेगा तुमको क्या पता।। आलोक रंजन इन्दौरवी